उमस ! उफ़्फ़," ये गर्मी !

                                        2020, 11 वे की 13 तारीख
Dear
Dr.Jggu,

   !! - ॐ नमः शिवाय - !!
शुभारंभ कहां से ? कैसे करूँ ? बे दिन तक तो तुम्हें Dear लिखूं के न लिखूं ? में ही मुझें उलझाए रखा हैं !  तुम्हारे मतानुसार दुनिया-जहाँ की नजरों में इक लड़का और लड़की का रिश्ता परस्पर सदैव द्विअर्थी ही रहा है, और हमारे दरम्यां जो भी कुछ हैं के था शायद हमने कभी समझने और समझाने का प्रयास तक ही नहीं किया ! शायद इसलिए ही बेनामी रिश्ते नामी रिश्तों से ज़्यादा खूबसूरत और दीर्घायु होते हैं ! बांधने से रिश्ते बासी हो जाते हैं, शायद !

अब तुम पढ़ते-पढ़ते अपनी फिलॉसोफी फुसफुसाओगी जैसे
हर बारी कॉल पर तुनककर मुझें कहा करती थी, " रिश्तों कों निभाना सिखों, उनसे दूरियां मत बनाओ ! कितनी सगाईयों कों तोड़ोगे ? You Know, " समाज मे सबंध जुड़ते कम, जोड़ने ज़्यादा पडते हैं !
अब क्या कहूं तुम्हें ? " पहली एकदम से छोड़ गई थी ! एकदम से ना...ना, वों तो हम सब तसल्ली पाने के लिए ऐसा कहा करते हैं ! हर सबंध में रोज़ थोड़ा-थोड़ा साथ छूटते ही तो जाता हैं ! वैसे भी तो आधा-अधूरा प्रेम ही हमें मुक़म्मल महान लगता हैं ! सोचो न हम कितनी पुर्ण प्रेम कहानियों कों भुला बैठे हैं ! हमारा ज़हन भी तो हमेशा वन साइडेड लव/रिलेशन को ही याद करता हैं ! माइंड भी तो हमेशा उनसे रिलेटेड मूवीज़, स्टोरीज़, सांग्स को ही सहेजकर रखता हैं, यादें बनाता हैं और मॉय फ़ेवरेट नाम दे देता हैं !
वैसे भी तो तुम्हें अधूरा प्रेम ही पूर्ण सत्य लगता था !

इन बीते महीनों में मैने तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं ढूढ़ा ? फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम, प्रतिलिपि, ट्विटर, वॉटपेड़, योर कोट, हर एक जगहें शायद ढूढ़ना ही प्रेम की विशेषता हैं !
मेरी बेजुबाँ ख़ामोशी कों तुम ने भाप तो जरूर लिया था मगर कभी समझ ही नहीं पाई ! अच्छा, तुम ही बताओं ? भला उस दिन मैं कैसे तुम्हारा सामना कर पाता ?, " ख़बरदार, अब हर लड़कियों में मुझें ढूँढा तो ? उतावड़ी  कर्कश आवाज़ संग बैचेनियो में डूबे मन से धक-धक करती धड़कनो की आहट तुम्हारी और फ़ोन के दूसरे छोर पर हा-हु से सिमटकर रहा बेचारा मैं

31st दिसंबर, "लास्ट कॉल, मेरा बर्थड़े.
2nd इंगेजमेंट 2019
हा, मैं अपनी होने वाली में तुम्हें ही ढूढ़ता था पर तुम्हें कभी उस जगहें रखकर देखने की हिमाकत नहीं कर पाया ! तुम्हें बांधकर साध्य करने की हिम्मत न कल थी, मुझमें, न आज हैं ! किसी को जानने और समझने में उतना ही फर्क हैं जितना किसी की पसंद बनना और किसी को पसंद करना !
मैं तुमसे वाफ़िक था पर तुम मुझसे कभी वाफ़िक थी ही नही ! मुझें तुम नहीं, " बस तुम्हारें जैसा हमदम-हमराही चाहिए था  !

ओ मिस्टर राईटर ! अबके तुम सगाई नहीं छोड़ोगे ? बहुते सही लड़की हैं ? मैंने बात की हैं उससे ? अपनी घड़ी अब उसके टाइम हिसाब से सेट करो !
काश, " यार जग्गू !
उस दिन तुम्हारे साथ साथ मेरे घरवालों को भी कह पाता ? काश, चीख़ पाता, चिल्लाकर अपनी भड़ास निकाल पाता, लड़ पाता, हर उस शख़्स से जो मुझें सगाई के लिए बाध्य करता हैं ! हाँ, नहीं हैं मुझमे इतना हिम्मत ! मैं नहीं बनना चाहता, किसी की भी तरहा..." हाँ, भगौड़ा हूं मैं, ड़रता हूं अपने सपनों के मर जाने से ! हा, भागता-फिरता हूं सांसारिक होने से "..
" पर क्यों ?? You are better then my friend, " ऐसा कहा करती थी ना तुम मुझें ! फिर भी ? एक बारी भी मुझें पूछना जरूरी नहीं समझा ?? क्यों ?? मेरे अंदर की अलाव को धुंआ-धुंआ होने के लिए अलग-धलग ही छोड़ दिया  ?

तुम पूछती थी ना हमेशा, " ओ मिस्टर राईटर ! यह डर चीज़ क्या हैं ? किस बात का डर ? सच कहूं तो, तब मैं कभी अपने अंतर्मन से पूछ ही नही पाया, तुम्हारे साथ, तुम्हारे साथ साथ में ही ख़ुश था !
तुम तो मेरी आख़री उम्मीद, " मेरी टॉनिक, मेरी पॉजिटिविटी
थी ! मैं हारकर भी तुम तक ही पहुँचना चाहता था, मैं जीतकर भी तुम तक ही आना चाहता था ! फिर भी ? एक बारी भी नहीं सोचा ? क्यों आख़िर.."जग्गू ? अब जब हर महीनें तुमसे चाहकर भी बात नहीं हों पाती हैं, तब उस अंदरूनी बैचेनी, तड़प, चाहत, लालसा कों मैं डर समझता हूं !

तो कभी-कभी लगता हैं, जैसे तुम कहीं थी ही नहीं ! तुम्हारा होना महज़ मेरे भीतर का वहम था, " शायद अधूरे प्रेम का ही कुछ अंश थी तुम !


Sorry, " Jggu !
मैं लिखकर इसे उन सभी सोशियल साइट पर साझा कर रहा हूं, जहां पहले कभी हम मिला करते थे ! जहां दुनियादारी की समझ से परे हमने अपनी इक छोटी सी दुनिया बचाई थी !
पाठक वर्ग इसे पढ़ने और समझने का प्रयास करेंगे ? अपनी-अपनी तरफ़ से क़यास लगाएंगे, कमेंट लिखेंगे, शायद उन्हें अधूरी प्रेम कहानी की बू आ सकती हैं !
ख़ैर, मुझें उन सबसे कोई लेना देना नहीं हैं !
मूझे जो किस्सा जिंदगी के हिस्से से जैसे जिस तरहा मिल रहा हैं, उसे बिना किसी लय/तूरा/लाग-लपेट के लिखकर  गुजरे  पलों को फिर से सजीव करने की गुस्ताखी कर रहा हु !
जैसे, " बिछड़ने के गम को पहले लिख दिया हूं और मुलाक़ात को अभी तक कोई रूप नही दे पाया हूं तो वही हमारी बातचीत के कुछेक अंश को बीच बीच मे छिट दिया हूं ! हो सकता हैं, तुम्हें कहीं-कहीं कुछ बातों पर से धूल झाड़ते समय लगे, मेरी लिखी बाते समझ न आए, शब्दों की अभद्रता लग सकती हैं, हर्फ़ तुम्हारे गले से नीचे न उतरे, मुझसे और मेरे शब्दों को लेकर गिला-शिकवा हो सकता हैं !

उम्मीद हैं कि, कभी बरसों बाद भी यह लेटर तुम्हे मिले तो तुम इस लेटर के जवाब में कुछ भी अपनी तरफ़ से पैग़ाम में नही लिखोगे ! गुज़रे लम्हों को छेड़ने की गुस्ताखी नही करोगें, जो कहानी वक्त के अधीन हो गई हैं उसे फिर से दोहराने की चेष्टा नही करोगें !
शायद कभी तुम फुर्सत के पलों में सोशियल साइट स्क्रॉल करो और सहसा तुम्हारे नाम की चिट्टी देखो तब तुम्हें धक्का सा लगेगा, मन और मस्तिष्क पर सवालों की झड़ी उभरेगी
तुम्हें ख़ुद से सवाल होगा ? Mr.Writer ! तुम इतने सालों तक कहाँ थे ? उसके जवाब में बस इतना ही कहूंगा, " मैं कहीं था ही नही !

यार कभी कभी ज़्यादा माइंडेड होकर चीज़-वस्तुओं के साथ, कुदरत के साथ, खुद की जात पर एक्सपेरिमेंट करना खुद के लिए अभिशाप सा बन जाता हैं ! मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो गया था !
ख़ैर अभी के लिए इतना ही  जल्द ही अपनी तरफ़ से आगे के किस्से लिखुगा


                                                      तुम्हारा अपना
                                                       Mr. Writer

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