जुनून अब " माँगी " का तप रहा..✍
जुनून अब " माँगी " का तप रहा सीने में आग बनके धड़क रहा !
बुझा चिराग हवाओ के जोरे में पर लावा बनके राख हुही गर्म फिर से !!
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जान लगा दु या जाने दु पर हर वार कसूर हवा पर न थोपु !
एक दिन बनु के वास्ते हर दिन कुछ करू - जो उस दिन खुद को खुद पर न थोपु !!
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सोच सोच में फिर अफसोस रह जाएगा - उम्र जब हौले से गुजर जाएगी !
आज की सुबह फिर शाम होकर कल में ढल जाएगी राह तेरी युही गुजर जाहेगी !!
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राह से भटकाते हजार मिलेंगे बहाने पर सोच लिया गर कुछ करके ही जाना है !
राह से भटकाते बहानो में एक कतरा मोल मंजिल का भी सोच लेकर ही चलना है !!
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" माँगी " तेरी मंजिल दिल का सुकूँ कलम है फिर क्यो भटक रहा तू पेपर से !
लिख ले लिख के लीक न हो जाए बात-तेरा जुनून तेरा पागलपन " कलम " ही तो है !!
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गर बदंगी को ही चूमना है " माँगी " तो सुकूँ दिल का निचोड़ लें !
छोड़ दे सोनीपत के सपने हार मान कर कलम छोड़ तू बैठ जा !!
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तड़प छुपी है तेरे सीने में लाखों-उम्मीदे दबी पड़ी है तेरे आलस्य में !
कदम बढ़ाचल फासले शिकायतों से हूबहू हो जाएंगे मंजिल बीच राह में खड़ी पड़ी गले लगाने को तड़प रही !!
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एक आगाज कर तेरी आवाज में खुद की औकात तलासने की
मिशाल बन जल मशाल की तरह अंधेरे को दूरकर उजारा फैला " माँगी " तेरे नाम का !!
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सुबह की पहली किरण में " दफा ए आलस " कर पैगाम " लेखक " का लिख !
शाम की आरामी चैन में " कलम " से कर्म लिख पैगाम " सपने " का भी लिख !!
#M@n6i
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